बृज की गोपियां भक्ति की प्रतिमूर्ति: स्वामी सुबोध आनंद

विश्वमोहन कुमार विधान।

बृज की गोपियां भक्ति कि साकार मूर्तियां थी।भगवान श्री कृष्ण उनको प्राणों से भी अधिक प्यारे, उनके परम प्रियतम थे।गोपियों ने अपना जीवन ही श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया था।भगवान से प्रेम कैसे करें यह सीखना हो तो ब्रज की गोपियों से ही सीखे।उक्त बातें ब्रह्मलीन संत स्वामी पथिक जी महाराज के परम शिष्य हरिद्वार से पधारे श्री स्वामी सुबोध आनंद जी महाराज ने धौनी तारापुर के दुर्गा स्थान परिसर में महिला सत्संग समिति द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन शुक्रवार को श्रोताओं के बीच सुनाई।उन्होंने कहा कि गोपी का तात्पर्य है वह आत्मा जो संपूर्ण इंद्रियों और अंतःकरण के द्वारा श्री कृष्ण के प्रेम रस का पान कर सके।बृज की गोपियां बड़े प्रेम से अपने घर में माखन तैयार करती थी।इसीलिए श्री कृष्ण अपने ग्वाल बाल सखाओ के साथ गोपियों के घर जाकर माखन चुरा चुराकर खाते थे खिलाते थे।माखन अत्यंत स्वादिष्ट मधुर कोमल सात्विक आहार है तथा दिव्य अलौकिक प्रेम का प्रतीक है।अतः माखन भगवान श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय है। स्वामी जी ने आगे कहा कि केवल भक्ति और प्रेम केवल पर ही माता यशोदा ने साक्षात परब्रह्म  परमात्मा श्री कृष्ण को अपना पुत्र समझ कर रस्सी के द्वारा ऊखल से बांध दिया था।रस्सी श्री कृष्ण के कमर में बंधी थी इसीलिए श्री कृष्ण का नाम दामोदर पड़ गया तथा कार्तिक मास दामोदर मास कहलाया,क्योंकि कार्तिक महीने में ही ऊखल बंधन लीला हुई थी। माखन चोरी,गोप कन्याओं का चीर हरण,कालीया नाग मान मर्दन तथा गोवर्धन पूजा का प्रसंग वर्णन किया गया।गोवर्धन पूजा के मौके पर भगवान श्री कृष्ण की सुंदर झांकी प्रस्तुत की गई।इस अवसर पर धौनी एवं तारापुर क्षेत्र के सैकड़ों महिला एवं पुरुष श्रद्धालु उपस्थित थे।

  

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