भागवत कथा में श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया।

मुंगेर/बिहार।


विश्वमोहन कुमार विधान।




धौनी दुर्गा स्थान मंदिर परिसर में भागवत कथा में श्री कृष्ण जन्मोत्सव में श्रद्वालुओं की भक्ति।दुष्ट जनों के संहार,सज्जनों की रक्षा तथा सनातन धर्म की  स्थापना के लिए भगवान नारायण समय-समय पर इस भारतवर्ष की पवित्र धरा पर अवतरित होते हैं। अपना कार्य पूरा करके फिर अपने परमधाम वापस चले जाते हैं।भगवान के जन्म और कर्म दिव्य होते हैं इसलिए भगवान के जन्म को अवतार तथा कर्म को लीला कहा जाता है।यह बातें ब्रह्मलीन स्वामी पथिक जी महाराज के परम शिष्य हरिद्वार से पधारे स्वामी सुबोध आनंद जी महाराज ने धौनी तारापुर के दुर्गा स्थान परिसर में महिला सत्संग समिति द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत सप्ताह कथा ज्ञान यज्ञ में चौथे दिन गुरुवार को श्रोताओं से कहीं।श्री कृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाते हुए स्वामी जी ने कहा कि द्वापर युग में मथुरा के कारागार में दैत्य राज कंस के द्वारा बंदी बनाए गए वसुदेव पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि बुधवार को मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में उसी प्रकार प्रगट हुए,जैसे पूर्णिमा की रात्रि को पूर्व दिशा में पूर्ण चंद्रमा का प्राकट्य होता है। देवकी और वसुदेव दोनों ने भगवान की स्तुति की।उस समय उस समय भगवान विष्णु अद्भुत बालक के रूप में दर्शन दे रहे थे। उनके चारों हाथों में शंख चक्र गदा कमल थे,पीतांबर किरीट कुंडल कौस्तुभ मणि आदि धारण किए हुए भगवान देवकी के प्रार्थना करने पर साधारण शिशु रूप में प्रगट हुए।वसुदेव जी ने भगवान बालकृष्ण को एक टोकरी में सिर के ऊपर रखकर कारागार से बाहर निकले तथा जमुना पार करके रात्रि में ही नंद बाबा के यहां सुरक्षित पहुंचा दिया।नंद बाबा के यहां पुत्र जन्म के अवसर पर महोत्सव मनाया गया। कथा के अंत में भगवान बालकृष्ण की सुंदर झांकी दिखाई गई।भगवान की झांकी देख कर तथा जन्मोत्सव के भजनों को सुनकर सभी श्रद्धालु स्त्री पुरुष आनंद विभोर हो गए।भागवत कथा सुनने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है तथा आसपास का माहौल भक्तिमय बना हुआ है।

  

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